शुक्रवार, 26 जून 2015

आवश्यक सुचना

।।बधाई   हो -  बधाई  हो - बधाई हो ।। सभी   ज्योतिष  प्रेमियों    को   जानकर    हर्ष    होगा   की   आपके   मित्र   { आचार्य   पं. भवानी शंकर  वैदिक }   का   नाम   एस्ट्रोसेज  के (हाल  ऑफ़  फेम ){Hall  of   fame}    में    उनकी   ज्योतिषीय   विलक्षणता   और   सटीक         विश्लेषण   योग्यता   को   देखकर   अंकित   कर   दिया   हैं। ध्यातव्य:   हो   की   मैंने   गत  दिनाँक २०/०६/२०१५  को  एस्ट्रोसेज   के   पहेली   संख्या   २७.   का   समाधान मैंने   दिया था  जिसके  समाधान   की   तार्किक  क्षमता   को   देख   एस्ट्रोसेज   ने   मेरे    को  हाल  ऑफ़  फ्रेम   में   नाम   दर्ज   कर   सम्मानित   किया   हैं।  जिसे चाहे तो आप स्वयं भी देख सकते हैं  क्विज नंबर 27 में विजेताओ  के नाम के साथ आपके मित्र का नाम भी अंकित हैं उसका लिकं इस प्रकार हैं  👇👇👇👇👇👇👇👇👇 http://www.astrosage.com/quiz/astrosage-astrology-quiz-hall-of-fame.asp  तो  ज्योतिष प्रेमियों   के   लिए   हर्ष   की  बात  हैं  की  अब   आप   मेरे   विचारों   से   एस्ट्रोसेज   पर   भी   लाभान्वित   हो   पाओगे ......।  तथा   कुछ   दिन   बाद   आपको मेरा  एस्ट्रोसेज   लिंक   भी   प्रेषित   कर   दिया    जाएगा । तब तक के लिए  हम   आपकी   बेताबी   समझ   सकते  हैं  अत:   पूर्व   सम्पर्क   हेतु  आप मुझसे फेसबुक  पेज पर भी संपर्क कर सकते हैं जिसका  लिंक यहाँ नीचे  प्रेषित कर रहा हूँ 👇👇👇👇👇👇👇👇 https://m.facebook.com/bhawanishankervedic  और आप मुझे मेरे ब्लॉग पर भी संपर्क कर सकते हैं उसका लिंक इस प्रकार हैं👇👇👇👇👇👇👇 bhawanivaidik.blogspot.com और अगर आप मुझे मेल करना चाहे तो उसका लिंक भी दे रहा हूँ 👇👇👇👇👇👇👇👇👇 bhawanivaidik@gmail.com  तो दोस्तों आप मेरे साथ बने रहे और ज्योतिषीय विश्लेषण द्वारा  भविष्य से अवगत रहे   और हाँ अपने विचार जरुर प्रस्तुत कीजियेगा और साथ में शेयर करना भी  न भूले ताकि सभी आपके मित्र भी मुझसे जुड़ सके !    धन्यवाद !  नमो नारायणाय _/\_  आचार्य पं. भवानीशंकर वैदिक  शिक्षाशास्त्री, साहित्याचार्य,वेदविभूषण [शुक्लयजुर्वेद]



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शुक्रवार, 5 जून 2015

सिंहस्थ गुरु में विवाह

क्यों नहीं होता विवाह सिंहस्थ गुरु दोष में... पढ़ें ले


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सिंह राशि में गुरु के संचरण के समय जब तक गुरुदेव सिंह राशि के नवांश में जितने समय तक रहते हैं, उतने समय तक विवाहादि संस्कार नहीं करना चाहिए। गंगा से दक्षिण, गोदावरी से उत्तर में स्थित राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र का थोड़ा उत्तरी भाग, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश और बिहार के कुछ दक्षिणी हिस्से गंगा और गोदावरी के बीच पड़ने वाले जितने प्रदेश हैं, उन देशों में सिंह के बृहस्पति में विवाहादि कार्य त्याज्य हैं। हालांकि गंगा और गोदावरी के बीच के क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य देशों में सिंहस्थ गुरु का विवाहादि कार्यों में निषेध नहीं है।


यह बात ध्यान रखने योग्य है कि मघा नक्षत्र के चारों चरण और पूर्वाफाल्गुनी के प्रथम चरण में जब तक गुरुदेव रहते हैं, उसे मघादि पंचपाद कहा जाता है अर्थात 04-00-00-00 से 04-13-20-00 के भोग काल तक गुरु जितने दिन रहें, उतने समय तक सब देशों में विवाहादि कार्य त्याज्य हैं। 

 

इस वर्ष यह समय ता. 15 जुलाई 2015 को घं. 05 मि. 31 से ता. 30 सितंबर 2015 को घं. 18 मि. 12 तक गुरुदेव का संचरण मघादि पंचपाद में रहेगा। इसके अतिरिक्त शेष भाग में (04-13-20-00 से 04-29-59-59) तक अर्थात पूर्वाफाल्गुनी के तीन और उत्तराफाल्गुनी के 1 चरण- इन 4 चरणों में गंगा से गोदावरी के बीच के देशों को छोड़कर अन्य देशों में विवाहादि कार्य करने में कोई दोष नहीं है।



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गुरुवार, 4 जून 2015

कृष्णमूर्ति पद्धति

कृष्णमूर्ति पद्धति कारक ग्रह

कृष्णमूर्ति पद्धति में "कारक ग्रहों" को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया जाता है अब प्रश्न यह उठता है कि कारक हैं कौन से ग्रह और इनका क्या योगदान है ज्योतिष में कुण्डली का अध्यन करते समय किसी भी विषय या घटना के जानने के लिये उस से सम्बन्धित भाव का उस भाव के स्वामी ग्रह का उस भाव मे स्थित ग्रह उस भाव स्वमी ग्रह एवम उस भाव को देखरहे ग्रह तथा उस घटना या भाव के स्थाई कारक ग्रहों का अध्यन किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में जन्म कुण्डली एवम प्रश्न कुण्डली दोनो के अध्यन में कारक ग्रहों को प्रमुखता से महत्व दिया जाता है ! 


कारक ग्रह : ग्रह मुख्य रूप से उस भाव का फ़ल प्रदान करते हैं जिस भाव मे वह स्थित होते हैं,  जिस भाव के स्वामी होते हैं, जिस भाव पर द्रष्टि रखते हैं अर्थात इन भावों के कारक होते हैं या इन भावों से सम्बन्धित परिणाम प्रदान करते हैं परन्तु कृष्णमूर्ति पद्धति में कारक ग्रह निर्धारण की पद्धति कुछ भिन्न है जो इस पद्धति की मुख्य जान है ! जो श्रेणी के अनुसार निम्नलिखित हैं :-

१.     भाव में स्थित ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !

२.    भाव में स्थित ग्रह !

३.    भाव के स्वामी ग्रह के स्वामित्व वाले नक्षत्रों में स्थित ग्रह !

४.    भाव का स्वामी ग्रह !

५.    प्रमुख कारक ग्रह के साथ स्थित ग्रह भी कारक होता है जब कि राहु तथा केतु यदि कारक ग्रह को देख रहे हों तो वह भी बलशाली कारक होजाते हैं !

उदाहरण :-

किसी भी कुण्डली के अध्यन करते समय यदि विवाह के विषय मे फ़लादेश करना हो तो सर्व प्रथम यह देखना आवश्यक है कि विवाह के लिये किन किन भावों का संयुक्त रूप से क्रियाशील होना विवाह के लिये आवश्यक है !

१.     सप्तम भाव :  विवाह के लिये मुख्य रूप से सप्तम भाव जिम्मेदार होता है सप्तम अर्थात सम्पर्क मे रहने वाला या वाली , सप्तम भाव जीवनसाथी को दर्शाता है  !

२.     द्वितीय भाव : द्वितीय भाव परिवार को दर्शाता है द्वितीय भाव परिवार में ब्रद्धि को दर्शाता है !

३.     ग्यारहवां भाव जातक के जीवन में लाभ दर्शाता है सच्चे मित्र को दर्शाता है !

४.     शुक्र मुख्य रूप या स्थाई रूप से विवाह का कारक होता है !


अतः विवाह के लिये कुण्डली के उक्त तीन भावों का संयुक्त रुप से अध्यन अर्थात उक्त तीनों भावों के कारक ग्रहों अध्यन किया जाता है ! अर्थात उक्त कारकों की संयुक्त महादशा, अन्तर्द्शा, प्रत्यंतर्दशा मे ही विवाह होगा !


जातक के जीवन के किन विषयों के अध्यन के लिये कुण्डली के किन भावो के करकों का संयुक्त रुप से अध्यन किया जाता है :

विषय                                  घटना के लिये उत्तरदयी भाव या कारक

स्वास्थ                          :     प्रथम एवम एकादश भाव !

रोग                               :     छ्ठा, आठवां एवम बारहवां भाव !

दुर्घटना                          :     आठवां, बारहवां एवम बाधक भाव !

आर्थिक स्थिति               :     दूसरा, छठा एवम ग्यारहवां भाव !

आर्थिक हानि                  :     आठवां, बारहवां एवम पंचम भाव !

स्थान परिवर्तन              :     तीसरा, दसवां एवम बारहवां भाव !

शिक्षा                            :     चतुर्थ, नवम एवम एकादश भाव !

भूमि, भवन                    :     चतुर्थ, एकादश एवम द्वादश भाव !

संतान जन्म                  :     द्वितीय, पंचम एवम एकादश भाव !

प्रेम प्रसंग                      :     द्वितीय, सप्तम एवम एकादश भाव !

तलाक                          :     प्रथम, छठा एवम दशम भाव !

व्यापार                         :     द्वितीय, दशम एवम एकाद्श भाव !



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जयपुर मेट्रो पर भविष्यवाणी

ज्योतिषीय  ______________________
           विश्लेषण
?????????    {®    जयपुर  
मैट्रो    ट्रेन   ©}
                       [ ©JAIPUR     METRO    TRAIN ®  ]

तो दोस्तों इंतजार की घडी ख़त्म हुई  आइये जानते हैं
  :-  "आचार्य "  पंडित     भवानी   शंकर    वैदिक    :: के साथ  >>>>>>>>

क्या   कहती   हैं  ज्योतिष ,  कैसा   रहेगा   सरकार   का   यह   कदम   ,  क्या   आर्थिक   व्यवस्था    दृढ    होगी   ;   जैसे    अनेक   प्रश्नों     का    समाधान  आईये    जानते    हैं      आचार्य पं भवानीशंकर वैदिक   जी   के   साथ   ........................???

शंका :-   #JAIPUR    METRO    TRAIN       (जयपुर    मेट्रो    ट्रेन)

संचालन    कैसा    रहेगा     राज्य    सरकार    और     राजवासियों      के    लिए?????????

   ????????????????????????????        " संचालन  -  समय "  
   बुधवार   सुबह  11:45 am
क्या   शुभ - परिणाम    देगा    इस   समय   का    लग्न   ___________________कौन    हैं    स्वामी    लग्न    का    क्या   होगा    जानते   हैं    आचार्य भवानीशंकर वैदिक   जी   के    श्री   मुख    से >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>   जयपुर   मेट्रो   का    संचालन   सिंह   लग्न   में   हुआ   जोकि    स्थिरता     का    परिचायक    हैं  ।
         लग्नेश        सूर्य     दशमस्थ        मित्र     ग्रह     मंगल     और      बुध     के    साथ      शत्रु     राशि    वृष     पर    स्थित    हैं  ।

हमने    पाया     लग्नेश     की     केंद्र    में   स्थिति     आर्थिक    व्यवस्था     को    सुदृढ़     बनाती
हैं ;  किन्तु   शत्रु    राशि   में     स्थिति      और      लग्नेश     की    चतुर्थ     भाव    पर    स्थिति    <<<<<<<<<<<<<   ये     दोनों     गतिविधियाँ      व्यावसायिक      क्षेत्र    पर    प्रतिकूल -  प्रभाव    भी   डाल     सकती     हैं  ;     साथ   ही    शनि   -    राहु    की   पूर्ण    शत्रु     दृष्टि     अनहोनी    की    पूर्वसूचना    सत्यापित     करती    हैं।   

//////स्थिर   लग्न :-          "स्थिर-लग्न    में    संपादित     कार्य    स्थिरता    का     परिचायक    होता   हैं    ;    किन्तु     वाहनादि 
चालन     --     संचालन    ,   विनिमय   ,   क्रय- विक्रयादि  ,
  के    लिए   __________® 
   "चर  लग्न"     श्रेष्ठफलप्रद      होता     हैं।    
बात    करें     चतुर्थ    भाव    की   जो कि   वाहनादि    का    सूचक    माना    जाता    हैं   ;   तत्र    नीचस्थ    चंद्र     और    शत्रु     राशिस्थ     शनि     दोनों    ही    नेष्ट    फल - प्रद    हैं।
                   वाहनादि    का    कारक  -  ग्रह?????????
      "शुक्र   -   ग्रह"     वाहनादि   का    कारक    हैं  ।
शुक्र   -   ग्रह    की    बात    करें    तो   शुक्र  तृतीय    एवं      दशम    स्थानाधीश     होकर    बारहवें     भाव    में    शत्रु    राशिस्थ     हैं   ;    अत:    यहाँ    पर   भी    शुक्र    की    स्थिति     संदेहास्पद    हैं।
                ////////    एक - नजर      नवमांश  -  कुंडली    पर   \\\\\\\\\\\\\\\\\नवमांश    कुंडली    कर्क -   लग्न    में   उदित    हैं ;   लग्नेश     चंद्र    अष्टमस्थ  हैं।
यहाँ    भी    स्थिति     नाजुक   नज़र      आ   रही   हैं।।

//////और     एक नजर     अंतिम -   चर्चा ............   में     बात     करें     दशाओं    की         तो    बुध   की     महादशा     में    राहु    का    अंतर    और   शुक्र    का    प्रत्यंतर       जो    कि   तीनो   ग्रह     लग्नेश    के    प्रतिकूल    परिणाम  -  दायक   हैं।।
[आचार्य पं भवानीशंकर वैदिक]

बुध    की    स्थिति    की    बात    करें   तो    बुध      "    मारकेश    और    एकादशेस    होकर    दशमस्थ    लग्नेश    के    साथ     स्थित    हैं   ;    जो   कि    चालन -   परिसंचालन    में    प्रतिकूल    प्रभाव    देने    वाले    हैं।।

  >>>आगे हरी इच्छा बलवान<<<

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नमो नारायणाय

आचार्य पं भवानीशंकर वैदिक
[शिक्षाशास्त्री , साहित्याचार्य , वेदविभूषण ]



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